नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा है कि ओबीसी में ‘क्रीमी लेयर’ का निर्धारण केवल आर्थिक मानदंड के आधार पर नहीं किया जा सकता है. कोर्ट ने ‘क्रीमी लेयर’ को हटाने के लिए मापदंड निर्धारित करने की हरियाणा सरकार की 17 अगस्त 2016 की अधिसूचना को खारिज कर दिया. कोर्ट ने कहा यह इंदिरा साहनी मामले में इस अदालत द्वारा जारी निर्देशों का सरासर उल्लंघन है.
क्रीमी लेयर ओबीसी की एक कैटेगरी है. इसका सीधा मतलब ओबीसी के बीच संपन्न लोगों से है. इस कैटेगरी के तहत आने वाले लोगों को आरक्षण के फायदे से वंचित रखा जाता है. यानी कि उन्हें नौकरी और शिक्षा में निर्धारित 27 फीसदी आरक्षण नहीं मिलता है. मौजूदा नियमों के अनुसार, आठ लाख रुपये या इससे अधिक की सालाना कमाई वाले परिवारों को क्रीमी लेयर की कैटेगरी में रखा जाता है. इन्हें आरक्षण का फायदा नहीं मिलता है. ऐसा कानूनी प्रावधान के आधार पर किया जाता है.
क्रीमी लेयर कैसे तय होती है
ओबीसी की क्रीमी लेयर को तय करने के कुछ नियम बनाए गए हैं. कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने साल 1993 में एक आधिकारिक मेमोरैंडम जारी किया था. इसमें बताया गया है कि सालाना 8 लाख रुपये से कम की इनकम वाले ओबीसी परिवार को ही आरक्षण का फायदा मिलेगा. इसमें ‘सैलरी’ और ‘कृषि इनकम’ को नहीं जोड़ा गया है. ‘सैलरी’ और ‘कृषि इनकम’ के अलावा अन्य स्रोतों से इनकम के आधार पर क्रीमी लेयर को तय किया गया है.
सरकार ने ओबीसी की क्रीमी लेयर में ‘सैलेरी’ को शामिल कर सीमा को आठ लाख से बढ़ाकर 12 लाख रुपये किए जाने की सिफारिश की है. लेकिन एनसीबीसी (नेशनल कमीशन फॉर बैकवर्ड क्लास) सरकार के इस फैसले का विरोध कर रही है. सरकार का कहना है कि सैलरी के फैक्टर को शामिल कर समुदाय के संपन्न लोगों को अलग करने में मदद मिलेगी. लेकिन एनसीबीसी का कहना है कि इससे पिछड़ा वर्ग समुदाय के हितों को नुकसान होगा.