प्रयागराज । इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया। हाई कोर्ट ने कहा है कि दुष्कर्म के मामले में पीडि़ता की अकेली गवाही ही सजा देने के लिए पर्याप्त है। पीडि़ता के बयान की अन्य सुसंगत साक्ष्यों से समानता होना भी जरूरी नहीं है, जब तक कि ऐसा करना बेहद जरूरी न हो। कोर्ट ने कहा कि यह बात मायने नहीं रखती है कि पीडि़ता के बयान में मामूली विरोधाभास है। ऐसा कोई कानून नहीं है कि पीडि़ता के बयान में सुसंगत साक्ष्यों के अभाव में विश्वास न किया जाय। कोर्ट ने 34 साल पुराने दुष्कर्म के मामले में सजायाफ्ता अभियुक्त की अपील खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया है।शाहजहांपुर के मुस्तकीम की अपील पर न्यायमूर्ति राजेंद्र कुमार चतुर्थ ने सुनवाई की। कोर्ट ने कहा कि पीडि़ता ने अभियोजन की कहानी का पूरी तरह से समर्थन किया है। बचाव पक्ष द्वारा की गई प्रतिपरीक्षा में ऐसा कोई बिंदु उजागर नहीं हुआ, जिससे पीडि़ता के बयान पर अविश्वास किया जा सके। इसके लिए न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट द्वारा प्रतिपादित दर्जनों न्यायिक सिद्धांतों का हवाला भी दिया। कोर्ट ने बचाव पक्ष की उस दलील को भी खारिज कर दिया कि पीडि़ता के अलावा अन्य कोई चश्मदीद गवाह घटना का नहीं है। यह दलील भी अस्वीकार कर दी कि पीडि़ता के शरीर पर चोट के कोई निशान नहीं है इसलिए मामला आपसी सहमति का भी हो सकता है। कोर्ट ने अपील खारिज करते हुए अभियुक्त को 15 दिन के भीतर सरेंडर करने, सुनाई गई चार वर्ष के सश्रम कारावास और पांच सौ रुपये जुर्माने की सजा पूरी करने का निर्देश दिया है।घटना 12 अगस्त 1987 की है। वादी मुकदमा (पीडि़ता का भाई) घर से बाहर गया था। देर रात तक नहीं लौटा तो उसकी नौ वर्षीय बहन उसे खोजने के लिए गई। सह घर से कुछ दूर स्थित बिस्कुट फैक्ट्री के पास पहुंची तो अभियुक्त मुस्तकीम उसे मिल गया। मुस्तकीम ने पीडि़ता का मुंह दबाकर घसीटते हुए मजार के पास ले गया। वहां उससे दुष्कर्म का प्रयास करने लगा। पीडि़ता के शोर मचाने पर पास में रहने वाले ताहिर हुसैन और राजेंद्र ङ्क्षसह मौके पर पहुंच गए। ताहिर के पास टार्च थी। उन्होंने अभियुक्त पर मौके पर पकड़ लिया। पीडि़ता का भाई भी कुछ देर में मौके पर पहुंच गया। अभियुक्त को पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया।