70 के दशक का स्‍वाद आज भी है मसालेदार आलू में बरकरार

प्रयागराज । अगर आप तीर्थराज प्रयाग और यहां स्थित गंगा, यमुना के पावन संगम तक की भूमि पर बसे माघ मेला में आ रहे हैं तो यह मसालेदार आलू एक बार फिर अपनी खुशबू और लज्जत बिखेरता हुआ आपका इंतजार कर रहा है। वैसे तो माघ मेला क्षेत्र में खानपान की सैकड़ों दुकानें होती हैं और किस्म-किस्म के व्यंजन और चाट आदि के ठेले खोमचे यहां होते हैं। वहीं बड़े-बड़े तसलों में खोमचे पर लगा इस व्‍यंजन को अधिकांश श्रद्धालु तलाशते हैं और इसे चटखारा लेकर खाते हैं। वजह है इस आलू में नमक, मसाले, तेल और हरी धनिया का संतुलन है। वहीं इसका दाम भी सस्‍ता ही है। यानी 10 रुपये में मन भरने वाला यह आइटम है। माघ मेला क्षेत्र में इस प्रकार का आलू दशकों पहले से श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है। 60 और 70 के दशक में जब फास्ट फूड या छोले भटूरे जैसे खाद्य व्यंजन बहुत कम हुआ करते थे, तब संगम तट और माघ मेला क्षेत्र में दर्जनों स्थानों पर यह आलू ही श्रद्धालुओं का मन और पेट भरता था।कमाल की बात है कि इस आलू में जो लजीज स्वाद और चटखारापन 70 के दशक में था, वही आज भी बना हुआ है। हालांकि यह अलग बात है कि तमाम अन्य दुकानें हो जाने व आर्थिक कमजोरी के चलते इस प्रकार के आलू बेचने वालों की संख्या कम होती जा रही है। फिर भी आलू खरीदने और खाने वालों की संख्या उतनी ही है जो संगम स्नान के बाद चारों तरफ आलू के खोमचे तलाशते नजर आते हैं।परेड मैदान के पास मसालेदार आलू बेच रही सुनीता का कहना है कि उसके घर की तीन पीढ़ियों से यही धंधा होता आ रहा है। 70 और 80 के दशक में भी उनके घर के लोग आलू बेचते थे। तब बिक्री भी ज्यादा होती थी लेकिन अब खाने वाले लोग कम भी आ रहे हैं लेकिन जो खाते हैं वह तारीफ करके ही जाते हैं।

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