आनंद मिश्र
लखनऊ । एक राजनीतिक दल का हाशिये से वापस आने का सफर किसी राजनीतिक दल के लिए उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य की राजनीति मे दशकों तक वर्चस्व बनाए रखने के बाद हाशिये पर जाने के बाद वापस आना एक असंभव सी घटना है। राजनीति ही क्यों, जीवन और समाज में भी एक बार ध्यान से उतर जाने के बाद किसी व्यक्ति का पुनः केन्द्रबिन्दु में आना लगभग असंभव माना जाता है।
काँग्रेस पार्टी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। दशकों तक प्रदेश में सत्तारूढ़ रहने के बाद, यह पार्टी वर्ष 1989 मे सत्ता से बाहर जो हुई, उसके बाद जैसे अन्य राजनीतिक विचारधाराओं वाले दलों के शोर-शराबे के बीच यह पार्टी कहीं खो सी गई। भले ही इस पार्टी की नीतियों और विचारों से सहमत रहने वाले लोग आशावान थे कि पार्टी एक बार फिर अपने सम्मानजनक स्थान पर वापस आएगी, लेकिन कई कारणों से ऐसा हो न पाया। चाहे चुनावी सफलता हो, या सामाजिक-राजनीतिक विमर्श, काँग्रेस कहीं भी एक गंभीर विकल्प के रूप मे नहीं आ पाई।
लेकिन पिछले दो वर्षों से, उत्तर प्रदेश के राजनीतिक व सामाजिक विमर्श मे काँग्रेस ने कुछ हलचल सी मचा दी है। न केवल पार्टी की गतिविधियां चर्चा में हैं, बल्कि पार्टी द्वारा उठाए गए मुद्दों की अन्य दल भी प्रमुखता से नकल कर रहे हैं। ऐसा पार्टी की महासचिव और प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा के सक्रिय रूप से प्रदेश की जनता को जागरूक करने की वजह से ही संभव हुआ है।
सामाजिक इतिहासकारों और राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि प्रियंका द्वारा जिस गंभीरता और ईमानदारी से समाज के कमजोर वर्गों, छात्राओं और महिलाओं की सुरक्षा और कल्याण के मुद्दे उठाए जा रहे हैं, वह अपने आप मे अभूतपूर्व है। प्रदेश मे पिछले कई महीनों से लगातार दौरे कर रही और लोगों से मिल रहीं प्रियंका पर लोगों का विश्वास बढ़ा है। पिछले वर्ष किसान आंदोलन के दौरान लखीमपुर खीरी मे हुई दर्दनाक घटना के बाद पीड़ित परिवारों के सदस्यों से मिलने जाने वालों मे प्रियंका सबसे पहली राजनीतिक पदाधिकारी थीं। उनके द्वारा जिस तरह से पीड़ित लोगों को सांत्वना दे कर उनकी मांगों को प्रमुखता से उठाया, उसके बाद ही शासन द्वारा कदम उठाए गए। इसके अतिरिक्त, किसानों, मजदूरों और व्यापारियों के हित के मुद्दे भी प्रियंका द्वारा लगातार उठाए जा रहे हैं, जिससे उन पर लोगों का विश्वास बढ़ा है। प्रियंका ने प्रदेश मे काँग्रेस की एक ऐसी सक्रिय और जुझारू टीम बनाई है जो किसी भी घटना के बाद लोगों से तुरंत मिलने और उनकी समस्याओं को प्रमुखता से उठाने और उनके निस्तारण करने के लिए मुस्तैद रहती है।
प्रियंका ने इतने कम समय में ज्वलंत मसलों को उठाकर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की मौजूदगी का अहसास लोगों को करा दिया है और पार्टी को इसका फायदा भी आगामी विधानसभा चुनावों में मिल सकता है। पार्टी उन्हें भविष्य के चुनावों में स्टार प्रचारक के रूप में देख रही है और अभी तक के घटनाक्रम यह दिख भी रहा है। उनका ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ उद्घोष देश में लोगों को अपनी तरफ आकर्षित कर रहा है। प्रदेश में बड़े पैमाने पर लोगों को पार्टी की सदस्यता दिलाने में उनका अभियान काफी सार्थक सिद्ध हुआ है और पार्टी इसे भाजपा की धर्म तथा जाति आधारित राजनीति के जवाब में देख रही है। प्रदेश के राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि काँग्रेस पार्टी के भीतर भी प्रियंका संकटमोचक बन कर उभर रही हैं और तमाम बड़े निर्णयों में उनकी राय-शुमारी की जा रही है। यही नहीं, वे पार्टी के भीतर भी असंतोष को दबाने में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं।
प्रियंका का कहना है कि उनके ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ के आह्वान की वजह से आज प्रधानमंत्री को महिलाएं के लिए काम करना पड़ रहा है। “महिलाएं जाग गई हैं, इस देश की शक्ति के आगे प्रधान मंत्री भी झुक गए हैं। यह उत्तर प्रदेश की महिलाओं की जीत है, जिससे मैं बहुत खुश हूं।”
वर्तमान मे उत्तर प्रदेश में जिस तरह का राजनीतिक वातावरण बना है, उसमे ऐसी पहल करना और लोगों का विश्वास जीतना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है, खास तौर पर ऐसी पार्टी के लिए जिसे कुछ समय पहले तक गंभीरता से लिया ही नहीं जा रहा था।