प्रयागराज। रोजगार का विकल्प सिर्फ नौकरी नहीं है। यह स्वरोजगार भी हो सकता। स्वरोजगार ऐसा हो की अपने साथ दूसरों को भी रोजगार मुहैया कराकर उसे भी आत्मनिर्भर बनाया जा सके। इसी अहम बात को ध्यान में रखते हुए हंडिया तहसील के जेसंवा गांव निवासी आलोक कुमार मधुमक्खी पालन कर खुद तो समृद्धिवान बने ही। अन्य 40 युवाओं के जीवन में भी मिठास घोल रहे हैं। मधुमक्खी पालन करने वालों को इसकी बारीकियां भी बताते हैं। आलोक ने 720 रुपये महीना की नौकरी छोड़कर मधुमक्खी पालन शुरू किया और आज तीन करोड़ रुपये से अधिक का सालाना टर्नओवर कर रहे हैं। आलोक बताते हैं कि वह 1999 में शहीद चंद्रशेखर आजाद पार्क में मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण की व्यवस्थाओं की देखरेख करते थे। इस काम के लिए 720 रुपये मिलते थे। मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण लेने वालों को देख इनके मन में भी मधुमक्खी पालन का विचार आया और नौकरी छोड़कर प्रशिक्षण लिया। प्रशिक्षण के बाद पहली बार 30 बाक्स में मधुमक्खी पालन का काम किया। उससे 10 कुंतल शहद मिली थी। जिसे बेचकर दस लाख रुपये आय अर्जित हुई थी। उसके आद से आलोक पीछे मुड़कर नहीं देखे और लगातार इस कारोबार को बढ़ाते गए। इस समय तीन हजार बाक्स में मधुमक्खी पालन का काम कर रहे हैं।