प्रयागराज । एक तालाब किस तरह से अर्थतंत्र से जुड़ता है, ये गंगा, यमुना, टोंस और बेलन नदियों के किनारे कछारी गांवों के लोगों को भलीभांति पता है। जब भूगर्भ जल का स्तर ठीक था तब इन कछारी गांवों में दलहनी और तिलहनी खेती से किसान मालामाल होते थे। वहीं कई वर्षों से भूजल के नीचे खिसकने से तराई के गांवों में तिलहनी और दलहनी ही नहीं अन्य फसलों का भी उत्पादन प्रभावित हो गया है। इसीलिए अब तरहार के इन गांवों में अमृत सरोवरों का प्राथमिकता पर निर्माण कराया जा रहा है।तालाबों से सिर्फ वर्षा जल का संचय ही नहीं होता है, उससे खेतों की सिंचाई भी होती है जिससे फसल बेहतर होती है। उत्पादन बढऩे से किसान मालामाल होते हैं। गंगा, यमुना, टोंस और बेलन नदियों के किनारे के कछारी गांवों में भूजल स्तर दिनोंदिन काफी नीचे खिसकता जा रहा है। इससे प्रयागराज जिले में स्थापित लगभग 140 करोड़ रुपये की सिंचाई परियोजनाएं फेल हो चुकी हैैं। लिफ्ट कैनाल से लेकर बाजड़ा पंप भी वर्षों से ठप पड़े हैं। इससे कछारी गांवों के खेतों की सिंचाई नहीं हो पाती है जिससे फसल उत्पादन कम हो गया है।तराई के गांवों में स्थापित लगभग 105 करोड़ रुपये की पेयजल योजनाएं भी फ्लाप साबित हो गईं, जिससे कछारी गांवों के लोगों को जल संकट का सामना करना पड़ रहा है। अब इन कछारी गांवों में 52 अमृत सरोवर बनाए जा रहे हैैं। इन सरोवरों से गांवों का भूजल स्तर तो सुधरेगा ही खेतों की सिंचाई भी हो सकेगी जिससे फसलें लहलहाएंगी। इन 52 अमृत सरोवरों के निर्माण में लगभग 9.5 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है।