महंत दिग्विजयनाथ की पुण्यतिथि समारोह में मुख्यमंत्री योगी बोले,

विरासत के प्रति कृतज्ञता का भाव सनातन संस्कृति की विशेषता

गोरखपुर । मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि सृष्टि, प्रकृति, पूर्वजों तथा विरासत के प्रति कृतज्ञता का भाव सनातन धर्म-संस्कृति की पहली विशेषता है। सनातन हिंदू धर्म संस्कृति में यही कृतज्ञता का भाव हमें निरंतर आगे बढ़ने की नई प्रेरणा प्रदान करता है। मुख्यमंत्री ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ की 53वीं तथा राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ की 8वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में आयोजित साप्ताहिक श्रद्धाजंलि समारोह के अंतर्गत मंगलवार (आश्विन कृष्ण तृतीया) को महंत दिग्विजयनाथ की पुण्यतिथि पर संबोधित कर रहे थे।उन्होंने कहा कि हनुमान जी जब लंका में जा रहे थे तब पर्वत ने उनसे प्रश्न किया था कि सनातन धर्म की परिभाषा क्या है, तब उन्होंने जवाब दिया था कि कोई आप पर कृपा करे तो उसके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करना ही सनातन धर्म का कर्तव्य है। यही इसका पहला लक्षण भी है। हर सनातन धर्मावलंबी इस भाव को ठीक से समझता है। गोरक्ष पीठाधीश्वर ने कहा कि जीवन चक्र की जड़-चेतन के बेहतर समन्वय से चलता है। यही कारण है कि हमारे सनातन धर्म ने वनस्पतियों, जीव-जंतुओं के महत्व को समान रूप से स्वीकार किया है। वर्ष में दो बार हम नवरात्र के जरिये सृष्टि की आदि शक्ति के प्रति कृतज्ञता का भाव प्रकट करते हैं तो वर्ष में एक पक्ष अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता हेतु तर्पण करते हैं। त्योहारों के प्रति लगाव भी कृतज्ञता ज्ञापित करने का माध्यम है।मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि अपनी विरासत के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने की गोरक्षपीठ की अद्भुत परंपरा है। पितृपक्ष की तृतीया तिथि को ब्रह्मलीन महंत दिग्विजय नाथ तथा चतुर्थी तिथि को ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ की पुण्यतिथि एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं। इस अवसर पर यहां होने वाले आयोजन में ब्रह्मलीन आचार्यद्वय की पुण्य स्मृतियां स्वतः ही जुड़ जाती हैं। इस अवसर पर महंतद्वय ने धर्म, समाज व राष्ट्र के लिए जिन मूल्यों व आदर्शों के अनुरूप शिक्षा, स्वास्थ्य व सेवा के विभिन्न प्रकल्पों को लोक कल्याण से जोड़ा, उन्हें और आगे ले जाने की प्रेरणा भी मिलती है।मुख्यमंत्री ने कहा कि 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में ब्रिटिश हुकूमत ने गोरक्षपीठ के तत्कालीन महंत गोपालनाथ जी को गिरफ्तार कर लिया था। उन पर आरोप था कि वह क्रांतिकारियों को प्रश्रय देते थे। जब भी जरूरत पड़ी सनातन धर्म की रक्षा के लिए संतो ने बढ़ चढ़कर भाग लिया। उन्होंने कहा कि धर्म व राष्ट्र की रक्षा के लिए शास्त्र के साथ शस्त्र का संधान करने की हमारे संत समाज की समृद्ध परंपरा रही है। यह हमारी हजारों वर्षों की विरासत भी है।योगी ने कहा कि हमारी कमी यह है कि हम किसी घटना के मूल्यांकन का प्रयास नहीं करते। हम सफलता को व्यक्तिगत पुरुषार्थ मान लेते हैं। सफलता व्यक्तिगत नहीं होती बल्कि यह सामूहिक प्रयासों का परिणाम होती है सफलता में टीम के एक-एकसदस्य का योगदान होता है। जैसे सेतुबंध के निर्माण में विशाल वानर-भालुओं से कम योगदान गिलहरी का भी नहीं रहा।श्रद्धांजलि समारोह में सुग्रीव किलाधीश (अयोध्या) से पधारे जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी विश्वेश प्रपन्नाचार्य ने कहा कि विभिन्नता में एकता का दर्शन गोरक्षपीठ की परंपरा रही है। ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ एवं महंत अवेद्यनाथ के इसी अभियान को योगी आदित्यनाथ आगे बढ़ा रहे हैं। दुग्धेश्वरनाथ मंदिर गाजियाबाद के महंत नारायण गिरी ने कहा कि ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ ने धर्म, शिक्षा, चिकिसा और समरसता का जो सूत्र दिया, वर्तमान पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ लोक कल्याण हेतु उसी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। कालिका मंदिर (नई दिल्ली) के महंत सुरेन्द्रनाथ ने कहा कि महंत दिग्विजयनाथ व महंत अवेद्यनाथ ने राजनीति को भी लोक कल्याण का जरिया बनाया। नैमिषारण्य से आए स्वामी विद्या चैतन्य ने गोरक्षपीठ को संपूर्ण विश्व मे गोरक्षा, शिक्षा व सामाजिक समरसता का महत्वपूर्ण स्तम्भ बताया।

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