हमारा संपूर्ण स्वास्थ्य उपापचय क्रिया (मेटाबालिज्म) पर निर्भर है और इसमें लिवर (यकृत) की अहम भूमिका है। यह ऐसा अंग है, जो शरीर में होने वाली सर्वाधिक रासायनिक क्रियाओं को पूरा करता है। शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालना, पाचन क्रिया को सक्रिय रखना, कोलेस्ट्राल व शुगर का नियंत्रण, प्रोटीन का संश्लेषण और शारीरिक ऊर्जा, जिसे रोग प्रतिरोधक क्षमता कहते हैं, में वृद्धि करना लिवर के विशेष कार्यों में शामिल हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, हर पांचवां भारतीय लिवर की किसी न किसी समस्या से ग्रसित है।आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में लिवर के अस्वस्थ होने का कारण पाचन क्रिया का खराब होना है। पाचन तंत्र में गड़बड़ी तब आती है, जब जीवनशैली अनियमित, वजन बढ़ा हुआ, असंयमित खानपान और शारीरिक निष्क्रियता रहती है। हालांकि कुछ मामलों में लिवर के संक्रमित होने का कारण आनुवांशिक भी हो सकता है। अल्कोहल का अत्यधिक सेवन व दवाओं का दुष्प्रभाव भी इसकी सेहत बिगाड़ देता है। बदली जीवनशैली में लिवर में चर्बी का जमाव व सूजन का होना आम बात है, लेकिन इस तरह की प्रारंभिक समस्याओं की अनदेखी ही भविष्य में गंभीर समस्या का कारण बनती है। यदि आयुर्वेद सम्मत आहार-विहार अपनाया जाए तो लिवर किसी बीमारी या संक्रमण की चपेट में आने से बचा रहेगा।
इन लक्षणों पर रखें नजर
पेट साफ न होना
पेट में हल्का दर्द रहना
कमजोरी महसूस होना
आंखों व नाखूनों का रंग पीला होना
लगातार पेशाब पीली होना
वजन गिरना
कमजोरी महसूस होना
भूख न लगना
रह-रहकर उल्टी महसूस होना
इनसे मिलेगा फायदा
दही व मट्ठे का सेवन करें। इससे पाचन तंत्र सक्रिय रहेगा
पानी की स्वच्छता का विशेष खयाल रखें।
गुनगुने पानी में एक चम्मच शहद मिलाकर नियमित पिएं।
नियमित पालक के जूस या सब्जी का सेवन करें। यह लिवर सिरोसिस में बहुत फायदेमंद है।
पर्याप्त पानी पिएं, जिससे शरीर में इलेक्ट्रोलाइट संतुलन बना रहे।
सुपाच्य भोजन करें: पाचन तंत्र की खराबी में हमारे आहार की अहम भूमिका होती है। फास्ट फूड, जंक फूड और अधिक चिकनाई व गरिष्ठ भोजन से शरीर में चर्बी जमा होने लगती है। इसका पहला प्रभाव लिवर पर पड़ता है और आंतों में सूजन आ जाती है। धीरे-धीरे इससे पीलिया की समस्या होती है, जो लिवर का प्रारंभिक संक्रमण है। इसलिए ऐसे भोजन का सीमित मात्रा में ही सेवन करें। भोजन में सुपाच्य और पौष्टिक आहार को प्राथमिकता दें।