प्रयागराज। दिन प्रतिदिन देश में बढ़ रहे प्रदूषण से आपके बच्चों की जिंदगी को खतरा बढ़ता जा रहा है। बच्चे इससे कम उम्र में ही अस्थमा यानी दमा, जिसे मेडिकल की भाषा में क्रानिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज कहते हैं, इसके शिकार हो रहे हैं। बच्चों को विभिन्न कारणों से पहले भी यह बीमारी होती रही है लेकिन तमाम वरिष्ठ डाक्टरों की स्टडी में आया है बदलती जीवनशैली व प्रदूषण इसके प्रभाव को बढ़ाने में सहायक हो गए हैं। अस्थमा पीडि़त बच्चों का ग्राफ पहले से अधिक बढ़ रहा है डाक्टरों के अनुसार बच्चों में अस्थमा का ग्राफ बढऩे की स्थिति केवल प्रयागराज या एक दो शहरों में ही नहीं बल्कि समूचा उत्तर भारत इससे प्रभावित है। एक तरह से अलर्ट हो जाने की नौबत है। क्योंकि खानपान में पौष्टिक तत्वों की लगातार होती कमी और इससे खराब होती रोग प्रतिरोधक क्षमता यानी हाइपर सेंसिविटी से बच्चों के फेफड़े की शक्ति कमजोर हो रही है। फिर प्रदूषण, ताजी हवा की अपेक्षा एसी रूम की पड़ती आदत, विभिन्न तरह की एलर्जी बच्चों को अनायास ही अस्थमा के रोगी बना रही है।
2014 में मैक्स सुपर स्पेशलिटी हास्पिटल मोहाली के वरिष्ठ कंसल्टेंट डा. अरपिंदर गिल ने भी एक तथ्य प्रस्तुत करते हुए कहा था कि 200 बच्चों पर अध्ययन हुआ है। इसमें प्रत्येक 20 में एक बच्चा दमाग्रस्त पाया गया है। उन्होंने इसका प्रमुख कारण आधुनिक शहरीकरण और प्रदूषण को माना था। प्रयागराज के वरिष्ठ चेस्ट रोग विशेषज्ञ डा. आशीष टंडन कहते हैं कि अस्थमा पीडि़त बच्चों की संख्या साल दर साल बढ़ती नजर आ रही है। छह से 12 साल उम्र के बीच बच्चों मेंं यह प्राय: देखा जा रहा है। ओपीडी में अभिभावक अपने बच्चों को लेकर आ रहे हैं। विभिन्न शहरों से भी चेस्ट विशेषज्ञों की यही रिपोर्ट है। बताया कि प्रदूषण, परागकण से एलर्जी, खेलने कूदने से लगातार होती दूरी, बिना रोशनदान वाले कमरों में परिवारों के रहने की मजबूरी आदि प्रमुख कारण हैं। कहा कि बच्चों के फेफड़े में हवा का मार्ग अवरुद्ध हो जाने को ही सीओपीडी कहते हैं।