शहनाई की सुरीली आवाज से पूरी दुनिया को दीवाना बनाने वाले उस्ताद बिस्मिल्ला खां को उनकी जन्मभूमि पर ही लगभग भुला दिया गया है। वाराणसी में तो उनकी याद में संग्रहालय बनने जा रहा है, परंतु डुमरांव की जिस मिट्टी में भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्ला खां की पैदाइश हुई, वहां उनकी यादें बस जयंती और पुण्यतिथि पर अखबारों के पन्ने तक सिमट कर रह गई हैं। डुमरांव के बंधन पटवा रोड के बचई मियां के घर के आंगन में 21 मार्च 1916 को बिस्मिल्ला खां का जन्म हुआ था। उनके परिवार के लोग अब यहां नहीं रहते। परंतु, वह घर आज भी खंडहर के रूप में मौजूद है। पूरे बक्सर जिले में कोई ऐसा स्मृति चिह्न नहीं है जो यह बता सके की साज के जिस सम्राट पर ङ्क्षहदुस्तान गर्व करता है, उनकी पैदाइश इसी मिट्टी की है। 21 अगस्त 2006 को 90 वर्ष की अवस्था में वाराणसी में उस्ताद बिस्मिल्ला खां ने अपनी अंतिम सांस ली थी।