काबुल। अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद अब तालिबान ने खुद को मजबूत करना शुरू कर दिया है. इसके लिए उसने जेलों के दरवाजे खोल दिए हैं और सैकड़ों की संख्या में तालिबान के आतंकी बाहर आए हैं. काबुल सेंट्रल जेल से सैकड़ों आतंकी रिहा किए गए हैं. देश के दूसरे जेलों का भी यही हाल है.
बरगाम जेल से करीब पांच हजार आतंकियों को बाहर निकाला गया है. चरिकर जेल से आतंकियों के बाहर आने की संख्या करीब छह सौ है. कुंदुज जेल से अब तक 180 आतंकी बाहर निकल चुके हैं. निमरोज जेल से चालीस तालिबानी आतंकी रिहा हुए हैं. कंधार जेल से तो वहां बंद सभी तालिबानी आतंकी बाहर आ चुके हैं. हेरात की जेल का भी हाल कंधार जेल की ही तरह है. यहां से भी सभी आतंकियों को रिहा कर दिया गया है. माना जा रहा है कि तालिबान अपने विरोधियों के खिलाफ इन लोगों की मदद ले सकता है.
इस बीच, अफगानिस्तान के पूर्वी शहर जलालाबाद में बुधवार को विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों पर तालिबान की हिंसक कार्रवाई में कम से कम एक व्यक्ति की मौत हो गई. अफगानिस्तान के स्वतंत्रता दिवस से एक दिन पहले पूर्वी शहर जलालाबाद में दर्जनों लोग राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए एकत्र हुए. 1919 में उसी दिन ब्रिटिश शासन का अंत हुआ था. लोगों ने तालिबान के झंडे को उतार दिया. तालिबान ने अपने कब्जा वाले क्षेत्रों में अपने झंडे लगा दिए हैं.
वीडियो फुटेज में तालिबान लड़ाकों को हवा में गोलियां चलाते हुए और भीड़ को तितर-बितर करने के लिए डंडे बरसाते हुए देखा जा सकता है. एक स्थानीय समाचार एजेंसी के रिपोर्टर बबरक अमीरज़ादा ने कहा कि उन्हें और एक अन्य एजेंसी के टीवी कैमरामैन के साथ तालिबान ने मारपीट की क्योंकि उन्होंने इस घटना को कवर करने की कोशिश की थी.
एक स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारी ने बताया कि जलालाबाद में विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों पर तालिबान की हिंसक कार्रवाई में कम से कम एक व्यक्ति की मौत हो गई और छह अन्य लोग घायल हो गए. स्वास्थ्य अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर यह जानकारी दी, क्योंकि वह मीडिया से बात करने के लिए अधिकृत नहीं हैं.
इस बीच, काबुल के उत्तर में स्थित पंजशीर घाटी के वीडियो फुटेज में दिख रहा है कि वहां संभावित विपक्षी हस्तियों ने बैठक की. वह क्षेत्र नदर्न एलायंस लड़ाकों का गढ़ है जिसने 2001 में तालिबान के खिलाफ अमेरिका का साथ दिया था. यह एकमात्र प्रांत है जो अभी तक तालिबान के नियंत्रण से दूर है.
वहां मौजूद लोगों में अपदस्थ सरकार के सदस्य भी शामिल थे. उनमें उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह भी थे जिन्होंने ट्विटर पर दावा किया कि वह देश के राष्ट्रपति हैं. यह अभी स्पष्ट नहीं हो सका है कि क्या उनकी योजना तालिबान को चुनौती देने की है.