नयी दिल्ली : संविधान के अनुच्छेद 370 को रद करने के दो साल बाद जम्मू-कश्मीर में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की यात्रा कई बड़े संकेत दे गई है। प्रदेश में शांति व विकास की गति को हिंसक घटनाओं के जरिये बाधित करने की कुछ लोगों की कोशिशों के बीच शाह ने जहां युवाओं की क्षमताओं और आकांक्षाओं को अस्त्र बनाया वहीं उग्रवादियों और अलगाववादियों को सख्ती से यह संदेश भी गया है कि अब रुकने और पीछे मुड़ने की चर्चा भी नहीं हो सकती है। ठीक उसी तरह जैसे कश्मीर में अब स्वायत्तता और स्वाधीनता जैसे शब्द गायब हो चुके हैं।
अनुच्छेद 370 और 35 ए को हटाने वाले गृहमंत्री अमित शाह के आने की खबर होते ही फिर से छिटपुट ¨हसा की आग लगाई गई। जिस तरह कश्मीरी पंडितों को घाटी से भागने के लिए मजबूर किया गया उसी तरह इस बार दूसरे प्रदेश से आकर रोजगार करने वालों को निशाना बनाया गया।वहां ऐसी घटनाएं भी होती रही हैं जब तत्कालीन राज्य सरकार की ओर से अर्धसैनिक बलों के मनोबल को ही तोड़ा गया। इसके विपरीत शाह ने सीआरपीएफ के कैंप में रात गुजार कर जहां उनकी पीठ थपथपाई, वहीं कश्मीरी युवाओं को साथ जोड़ा। जिन राजनीतिक दलों पर अलगाववादियों से साठगांठ का आरोप लगता रहा है उन्हें कठघरे में खड़ा किया और कहा कि वे पाकिस्तान के साथ नहीं कश्मीरी युवाओं से बात करने आए हैं। तीन दिवसीय यात्रा की अहम बात यह रही कि उन्होंने हेलीकाप्टर की बजाय सड़क मार्ग से यात्रा की। कैंप में रुके, सड़क चलते रुककर चाय पी और लोगों के साथ सीधा संवाद किया। आंतरिक सुरक्षा की समीक्षा और कश्मीरी युवा उनकी यात्रा के केंद्र में रहे।