गोंडा । अगर आप गर्मी की छुट्टियां बिताने के लिए घूमने जाना चाहते हैं तो एक बार गोंडा भी आइए। भगवान श्रीराम की जन्मस्थली अयोध्या से सटे इस जिले की मिट्टी ऋषि-मुनियों की तपोभूमि है। यहां घूमने से न सिर्फ ऐतिहासिक धार्मिक स्थलों के दर्शन होंगे बल्कि त्रेता व द्वापरयुग की यादें भी ताजा हो जाएंगी। जिसे आप कभी भुला नहीं सकेंगे। आज हम इस लेख के जरिए उन पर्यटन स्थलों के बारे में आपको बताने जा रहे हैं जहां आप कम खर्च में खूब आनंद महसूूस कर सकेंगे। यहां पहुंचना भी बेहद आसान है और यहां आपको सारी मूलभूत सुविधाएं भी मिलेंगी।गोंडा जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर स्थित छपिया मंदिर जाने के लिए छपिया से लखनऊ तक परिवहन निगम द्वारा मात्र दो वातानुकूलित बसों का संचालन किया जा रहा है। इसके अलावा रेलमार्ग के जरिए छपिया तक पहुंचा जा सकता है। गोरखपुर से बांद्रा जाने वाली अवध एक्सप्रेस का ठहराव यहां होता है। यहां मंदिर प्रशासन यात्रियों के रहने व खाने के लिए इंतजाम करता है। परिसर में ही वातानुकूलित कक्ष के साथ ही अन्य इंतजाम हैं। बताया जाता है कि छपिया में स्वामी नारायण संप्रदाय के प्रर्वतक घनश्याम महाराज की जन्मस्थली है। यहां हर साल देश व विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन-पूजन करने आते हैं। कार्तिक पूर्णिमा पर यहां भारी भीड़ होती है। यहां गो-सेवा के साथ ही तालाब का दृश्य काफी आकर्षक है।
पृथ्वीनाथ मंदिर : जिला मुख्यालय से करीब 25 किमी दूर स्थित खरगुपुर में प्राचीन पृथ्वीनाथ मंदिर है। इसमें स्थापित शिवलिंग काले कसौटी के पत्थर का है। किवंदतियों के अनुसार, पांडव पुत्र भीम ने द्वापरयुग में इस शिवलिंग की स्थापना की थी। यहां हर सोमवार को मेला लगता है जबकि सावन मास और शिवरात्रि पर हजारों की संख्या में जिले व दूसरे क्षेत्रों से श्रद्धालु दर्शन करने को आते हैं। यहां सिर्फ सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है। टैक्सी के साथ ही निजी वाहन से भी पहुंचा जा सकता है। मंदिर से डेढ़ किलोमीटर दूर झालीधाम आश्रम है। यहां यात्रियों के ठहरने के साथ ही भोजन का भी बढि़यां इंतजाम है।
वाराही देवी मंदिर : पर्यटक यहां पर सड़क मार्ग से पहुंच सकते हैं। परिवहन निगम मंदिर तक बस संचालित करा रहा है। यह जिला मुख्यालय से सिर्फ 35 किलोमीटर की दूरी पर है। इसकी मान्यता है कि जिले के मुकंदपुर में स्थापित मां वाराही देवी मंदिर भक्तों की आस्था व विश्वास का केंद्र है। वाराह पुराण के मतानुसार, जब हिरण्य कश्यप के भ्राता हिरण्याक्ष का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने वाराह अवतार लिया तो पाताल लोक जाने के लिए आदिशक्ति की उपासना की तो मुकुन्दपुर में सुखनई नदी के तट पर मां वाराही देवी अवतरित हुईं थीं।इस मंदिर में एक सुरंग भी है। किवंदतियों के अनुसार, भगवान वाराह ने पाताल लोक तक का मार्ग इसी सुरंग से तय किया था और हिरण्याक्ष का वध किया था। मां वाराही देवी का यह प्राचीन मंदिर चारों ओर से वट वृक्ष की शाखाओं से घिरा हुआ है। जो आपको काफी सुकून भरा और आनंदमयी महसूस कराएगा। सुरंग के गर्भगृह में अखंड ज्योति प्रज्ज्वलित होती रहती है। इस सुरंग की गहराई आज तक मापी नहीं जा सकी है। मान्यता है प्रतीकात्मक नेत्र चढ़ाने से आंख संबंधी बीमारियां ठीक हो जाती है।
पार्वती-अरगा पक्षी विहार : पार्वती अरगा पक्षी विहार गोंडा का प्रमुख पर्यटन स्थल है। यहां हर साल लाखों की संख्या में पर्यटक भ्रमण करने के लिए आते हैं। यहां तक जाने के लिए सड़क मार्ग की सुविधा है। यहां लोग निजी वाहन या टैक्सी से भी पहुंच सकते हैं। जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर पार्वती-अरगा पक्षी विहार 12 हजार हेक्टेयर में फैली है। नौ किलोमीटर फैला यह क्षेत्र नौ गांवों को जोड़ता है। यहां सर्द मौसम में विदेशी पक्षी आते हैं। पार्वती-अरगा झील वैसे तो पक्षी विहार के नाम से जानी जाती है, मान्यता है कि ये माता पार्वती व भगवान महादेव के अटूट प्रेम की निशानी है। पार्वती झील ही नहीं, बल्कि इसके नाम से गांव भी बसा है। विदेश में बैठे लोग भी रामसर साइट के जरिए पक्षी विहार की जानकारी हासिल कर सकते हैं।
पसका संगम : संगम तट पर सड़क मार्ग के जरिए पहुंचा जा सकता है। निजी वाहन के अलावा टैक्सी सुविधा भी मिल सकती है। बताया जाता है कि पसका में सरयू, घाघरा व टेढ़ी नदी का संगम होता है। इसे लघु प्रयाग का संगम भी कहते हैं। हर साल संगम तट पर मेला लगता है। थोड़ी दूर पर राजापुर में रामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास की जन्मस्थली भी है। यहां मंदिर में भगवान राम, लक्ष्मण व माता सीता व तुलसीदास की की प्रतिमा रखी हुई है। सूकरखेत में गुरु नरहरिदास का आश्रम व भगवान वाराह का मंदिर भी है।
महर्षि पंतजलि की जन्मभूमि कोड़र : श्री पतंजिल जन्मभूमि न्याय के अध्यक्ष डा. स्वामी भगवदाचार्य के अनुसार महर्षि पतंजलि की जन्मस्थली कोड़र में है। महर्षि पतंजलि ने योग सूत्र की रचना के अतिरिक्त पाणिनि कि अष्टाध्यायी पर महाभाष्य की रचना की है। इस ग्रंथ में पतंजलि को गोनर्दीय कहा गया है। पहले गोंडा जिले को गोनार्द कहा जाता था। इनके जन्म स्थल के प्रमाण के लिये राघवेंद्र चरित सर्ग-एकके श्लोक 50 में विवरण मिलता है कि पतंजलि का निवास सरयू के किनारे पतंजलिपुरी कोंड़र गांव में था। यह स्थान अब तक अविकसित है। जन्म स्थान के नाम पर एक चबूतरा व परिसर में देवी दुर्गा व राम जानकी का मंदिर स्थापित है।जिला मुख्यालय पर दुखहरणनाथ मंदिर, काली भवानी मंदिर के साथ ही हनुमानगढ़ी भी पर्यटन के आकर्षण का केंद्र है। गांधीपार्क में एशिया की सबसे बड़ी संगमरमर की महात्मा गांधी की प्रतिमा लगी है। खैरा भवानी मंदिर भी है। कर्नलगंज बरखंडीनाथ मंदिर, वजीरगंज के बाल्हाराई में बालेश्वरनाथ मंदिर है। यहां घूमना बेहद ही आसान है और यह गोंडा शहर में ही है।