लखनऊ। उत्तर प्रदेश के दो लोकसभा सीटों पर आजमगढ़ और रामपुर में आज लोकसभा के उपचुनाव के लिए मतदान होना है। यूपी में विधानसभा चुनाव के बाद दो सीटों पर हो रहे लोकसभा उप चुनाव का मुकबला बड़ा रोचक हो गया है। आजमगढ़ और रामपुर में सपा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। आजमगढ़ और रामपुर दोनों ही सपा के अभेद किले की तरह रहे हैं, जिसने मुश्किल वक्त में भी समाजवादी पार्टी का साथ नहीं छोड़ा। रामपुर और आजमगढ़ संसदीय सीट पर होने वाले उपचुनाव को वर्ष 2024 के चुनाव से पहले के लिटमस टेस्ट के तौर पर देखा जा रहा है. आजमगढ़ से इस उपचुनाव में सपा के धर्मेन्द्र यादव को, बसपा ने गुड्डु जमाली को और भाजपा ने दिनेश लाल यादव निरहुआ को मैदान में उतारा है। आपको बता दें कि आजमगढ़ सपा का ऐसा मजबूत गढ़ है जिसने भाजपा की प्रचंड लहर में भी सपा का साथा दिया है। बता दें कि भाजपा की प्रचंड लहर में भी आजमगढ़ में साल 2017 के पिछले चुनाव में समाजवादी पार्टी ने सबसे ज्यादा पांच सीटें जीती थीं. चार सीट बीएसपी ने जीती थी, जबकि बीजेपी सिर्फ फूलपुर पवई की सीट ही जीत सकी थीबता दें कि भाजपा की प्रचंड लहर में भी आजमगढ़ में साल 2017 के पिछले चुनाव में समाजवादी पार्टी ने सबसे ज्यादा पांच सीटें जीती थीं। चार सीट बीएसपी ने जीती थी, जबकि बीजेपी सिर्फ फूलपुर पवई की सीट ही जीत सकी थी. वहीं 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा ने सभी 10 सीटों पर अपना परचम लहराया था. वहीं लोकसभा चुनाव की बात करे तो वोटर्स ने 2014 की मोदी लहर में भी मुलायम सिंह यादव ने यहां से सांसद बनाया। वहीं 2019 में खुद अखिलेश यादव यहां से चुनाव जीत कर संसद पहुंचेबता दें कि भाजपा की प्रचंड लहर में भी आजमगढ़ में साल 2017 के पिछले चुनाव में समाजवादी पार्टी ने सबसे ज्यादा पांच सीटें जीती थीं। चार सीट बीएसपी ने जीती थी, जबकि बीजेपी सिर्फ फूलपुर पवई की सीट ही जीत सकी थी। वहीं 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा ने सभी 10 सीटों पर अपना परचम लहराया था. वहीं लोकसभा चुनाव की बात करे तो वोटर्स ने 2014 की मोदी लहर में भी मुलायम सिंह यादव ने यहां से सांसद बनाया। वहीं 2019 में खुद अखिलेश यादव यहां से चुनाव जीत कर संसद पहुंचेबता दें कि भाजपा की प्रचंड लहर में भी आजमगढ़ में साल 2017 के पिछले चुनाव में समाजवादी पार्टी ने सबसे ज्यादा पांच सीटें जीती थीं। चार सीट बीएसपी ने जीती थी, जबकि बीजेपी सिर्फ फूलपुर पवई की सीट ही जीत सकी थी। वहीं 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा ने सभी 10 सीटों पर अपना परचम लहराया था। वहीं लोकसभा चुनाव की बात करे तो वोटर्स ने 2014 की मोदी लहर में भी मुलायम सिंह यादव ने यहां से सांसद बनाया। वहीं 2019 में खुद अखिलेश यादव यहां से चुनाव जीत कर संसद पहुंचे। आजमगढ़ को सबसे सुरक्षित और मजबूत गढ़ मानते हैं. पिछले कुछ सालों में बीजेपी ने अखिलेश के इस मजबूत किले को ढहाने की रणनीति तय की। बदले हुए हालात में आजमगढ़ में पिछले प्रदर्शन को दोहराना और उसमे बढ़ोत्तरी करना अखिलेश के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। कहा जा सकता है कि पूर्वांचल की राजनीति का केंद्र बिंदु कहे जाने वाले समाजवाद के मजबूत गढ़ में इस बार अखिलेश यादव की अग्नि परीक्षा होनी है। इस अग्नि परीक्षा में अखिलेश पास होते हैं या नहीं, इसका फैसला उपचुनाव के नतीजों से होगा. हालांकि बीजेपी आजमगढ़ में अखिलेश की घेरेबंदी करने में इस बार हर सियासी दांव आजमा रही है। आजमगढ़ को सबसे सुरक्षित और मजबूत गढ़ मानते हैं. पिछले कुछ सालों में बीजेपी ने अखिलेश के इस मजबूत किले को ढहाने की रणनीति तय की। बदले हुए हालात में आजमगढ़ में पिछले प्रदर्शन को दोहराना और उसमे बढ़ोत्तरी करना अखिलेश के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। कहा जा सकता है कि पूर्वांचल की राजनीति का केंद्र बिंदु कहे जाने वाले समाजवाद के मजबूत गढ़ में इस बार अखिलेश यादव की अग्नि परीक्षा होनी है। इस अग्नि परीक्षा में अखिलेश पास होते हैं या नहीं, इसका फैसला उपचुनाव के नतीजों से होगा। हालांकि बीजेपी आजमगढ़ में अखिलेश की घेरेबंदी करने में इस बार हर सियासी दांव आजमा रही है। आजमगढ़ को सबसे सुरक्षित और मजबूत गढ़ मानते हैं. पिछले कुछ सालों में बीजेपी ने अखिलेश के इस मजबूत किले को ढहाने की रणनीति तय की. बदले हुए हालात में आजमगढ़ में पिछले प्रदर्शन को दोहराना और उसमे बढ़ोत्तरी करना अखिलेश के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। कहा जा सकता है कि पूर्वांचल की राजनीति का केंद्र बिंदु कहे जाने वाले समाजवाद के मजबूत गढ़ में इस बार अखिलेश यादव की अग्नि परीक्षा होनी है। इस अग्नि परीक्षा में अखिलेश पास होते हैं या नहीं, इसका फैसला उपचुनाव के नतीजों से होगा। हालांकि बीजेपी आजमगढ़ में अखिलेश की घेरेबंदी करने में इस बार हर सियासी दांव आजमा रही है। वहीं 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा ने सभी 10 सीटों पर अपना परचम लहराया था। वहीं लोकसभा चुनाव की बात करे तो वोटर्स ने 2014 की मोदी लहर में भी मुलायम सिंह यादव ने यहां से सांसद बनाया. वहीं 2019 में खुद अखिलेश यादव यहां से चुनाव जीत कर संसद पहुंचे। आजमगढ़ को सबसे सुरक्षित और मजबूत गढ़ मानते हैं. पिछले कुछ सालों में बीजेपी ने अखिलेश के इस मजबूत किले को ढहाने की रणनीति तय की। बदले हुए हालात में आजमगढ़ में पिछले प्रदर्शन को दोहराना और उसमे बढ़ोत्तरी करना अखिलेश के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। कहा जा सकता है कि पूर्वांचल की राजनीति का केंद्र बिंदु कहे जाने वाले समाजवाद के मजबूत गढ़ में इस बार अखिलेश यादव की अग्नि परीक्षा होनी है। इस अग्नि परीक्षा में अखिलेश पास होते हैं या नहीं, इसका फैसला उपचुनाव के नतीजों से होगा. हालांकि बीजेपी आजमगढ़ में अखिलेश की घेरेबंदी करने में इस बार हर सियासी दांव आजमा रही है।