माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन बसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन ज्ञान और बुद्धि की देवी मां सरस्वती का आभिर्भाव हुआ था। इसलिए इस दिन उनके पूजन का विधान है। मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती के पूजन से बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति होती है। जो भी लोग साहित्य, कला, संगीत के क्षेत्र से जुड़े हैं, इस दिन विशेष रूप से मां सरस्वती का पूजन करते हैं। इसके साथ ही बसंत पंचमी के दिन प्रेम के देवता कामदेव के पूजन का भी विधान है। आइए जानते हैं बंसत पंचमी के दिन कामदेव के पूजन के पीछे क्या है पौराणिक मान्यता….हिंदू धर्म में का कामदेव को प्रेम का देवता माना जाता है। मान्यता है कि धरती पर सभी प्रणियों में प्रेम और उन्माद की उत्पत्ति कामदेव और उनकी पत्नी रति के नृत्य से होती है। जो कि इस धरा पर संतति की उत्पत्ति का आधार है। इसके साथ ही बसंत पचंमी के दिन को बसंत ऋतु के आगमन होता है। लोग शीत ऋतु का आलस्य और शिथिलता त्याग कर प्रेम और उन्माद से प्रफुल्लित होते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार बसंत पंचमी के दिन कामदेव और रति स्वर्ग से पृथ्वी पर आते हैं। उनके आगमन से ही धरा पर बसंत ऋतु का आगमन होता है। इसी कारण बसंत पंचमी पर कामदेव के पूजन का विधान है।पौराणिक कथाओं के अनुसार कामदेव भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के पुत्र हैं। उन्हें काम,वासना, प्रेम और उन्माद का देवता माना जाता है। मान्यता है कि उनके नृत्य और संगीत से ही सभी जीव-जंतुओं में प्रेम और काम भावना का संचांर होता है। जो कि पृथ्वी पर संतिति निर्माण का आधार है। कथा के अनुसार कामदेव और रति ने ही माता सती की मृत्यु के बाद भगवान शिव के वैराग्य को तोड़ा था। जिससे क्रोधित हो कर भगवान शिव नें कामदेव को भस्म कर दिया था। लेकिन उनके वरदान से कामदेव का पुनर्जन्म द्वापर युग में श्री कृष्ण के पुत्र के प्रद्युम्न के रूप में हुआ था।
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