गोरखपुर। उत्तर प्रदेश के सभी मेडिकल कालेजों में अब नर्सिंग की पढ़ाई होगी। पांच साल के भीतर प्रदेश के सभी मेडिकल कालेजों नर्सिंग कालेज खोले जाएंगे। यह घोषणा उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने की। बस्ती में आयोजित एक कार्यक्रम में डिप्टी सीएम ने कहा कि अगले पांच साल में प्रदेश के सभी मेडिकल कालेज में नर्सिंग कालेज खोलने रूप रेखा तैयार हो चुकी है। अस्पताल के लिए जितना महत्वपूर्ण डाक्टर हैं, उतना ही नर्सिंग और पैरामेडिकल स्टाफ।डाक्टरों की कमी दूर करने के लिए हरेक जिले में मेडिकल खोले जा रहे हैं। वर्ष 2016 तक जहां उत्तर प्रदेश में महज 13 मेडिकल कालेज थे। वहीं अब इनकी संख्या बढ़कर 35 हो गई है। इसके अलावा 30 निजी मेडिकल कालेज भी खुल चुके हैं। 14 जिलों को छोड़कर अन्य सभी जिलों में मेडिकल कालेज खोलने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। छह जिलों में पीपीपी माडल (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) पर मेडिकल कालेज खोले जाएंगे। इसके लिए सरकार 150 करोड़ की सब्सिडी देगी।उन्होंने कहा कि शहर से लेकर गांव तक के अस्पतालों में डाक्टरों और दवाओं की कमी का मुद्दा समाप्त हो गया है। पहले दवा समाप्त होने के बाद इसकी डिमांड की जाती थी लेकिन अब उससे पहले ही अस्पताल में दवा पहुंच जा रही है। हरेक जगह एक सप्ताह की दवा का भंडारण अनिवार्य कर दिया गया है। बदलाव की ही देन है सरकारी अस्पतालों के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ रहा है। प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में प्रतिदिन एक लाख सत्तर हजार से अधिक मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं।इनमें से बारह हजार मरीज सड़क एवं अन्य हादसोें में घायल होकर आते हैं जबकि आठ हजार मरीज लीवर,किडनी और हर्ट जैसे गंभीर रोगों से पीड़ित होते हैं। हर रोज सरकारी अस्पतालों में पांच हजार मरीजों का आपरेशन किया जा रहा है। मरीजों को बेहतर चिकित्सकीय सुविधा उपलब्ध कराने के लिए आंकड़ों की निरंतर मानीटरिंग की जा रही है, जहां जिस रोग मरीज ज्यादा आ रहे हैं, वहां के अस्पतालों में उसके अनुरूप व्यवस्था भी दुरूस्त की जा रही है। हाईवे से जुड़े जिलों में ट्रामा सेंटर को प्रभावी बनाया जाएगा। इस दिशा में तेजी से प्रयास किए जा रहे हैं। कहा कि पूर्व की सरकार ने कागजों में ट्रामा सेंटर तो खोल दिए लेकिन न डाक्टरों की तैनाती की और न ही इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित किए। हमने इसे चुनौती के रूप में लिया है। वर्ष 2017 के पहले प्रदेश में महज 13 मेडिकल कालेज और इनमें सिर्फ 1790 नीट उत्तीर्ण छात्र ही प्रवेश ले पाते थे। वर्तमान में इनकी संख्या बढ़कर 35 हो गई है। ऐसे में यह सीटें बढ़कर तीन गुनी हो गई है। इससे आने वाले समय में प्रदेश में डाक्टरों की कमी दूर हाे जाएगी। मरीजों को पहले बदन दर्द, पेट दर्द, उल्टी, बुखार और खांसी के इलाज के लिए दूर जाना पड़ता था। 25 हजार उपकेंद्र और 15 हजार हेल्थ वेलनेस सेंटर संचालित कर सरकार ने एक बड़ा काम किया है। इन सेंटरों पर एएनएम और कम्युनिटी हेल्थ अफसर कार्यरत तो हैं ही दवाओं की भी कोई कमी नहीं है। इन सेंटरों पर कोई गंभीर मरीज पहुंचता है तो संजीवनी एप के जरिए वो विशेषज्ञ चिकित्सकों से संपर्क कर जरूरी परामर्श ले सकते हैं।