लखनऊ । सात मार्च को विधान सभा चुनाव समाप्त होने के साथ ही 10 मार्च को परिणाम घोषित हाेगा। मतगणना के परिणाम के साथ ही होलाष्टक का रंग भी चटक होगा। इसी दिन से आठ दिनों की होली की शुरुआत होगी। 17 मार्च को होलिका दहन और 18 मार्च को होली मनाई जाएगी। आचार्य एसएस नागपाल ने बताया कि सनातन परंपरा में उमंग व उल्लास से भरी होली महापर्व का बहुत महत्व है। इस महापर्व से से आठ दिन पूर्व शुभ कार्यों के करने की मनाही होती है। जिसे होलाष्टक कहा जाता है।विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, मकान-वाहन की खरीदारी आदि होलाष्टक में वर्जित है। होलाष्टक के समय में कोई नया कार्य जैसे व्यापार, निर्माण कार्य या नई नौकरी भी करने से बचना चाहिए। फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से पूर्णिमा तक होलाष्टक मनाया जाता है। इस वर्ष होलाष्टक 10 मार्च से शुरू होकर 17 मार्च तक रहेगा। 17 मार्च को होलिका दहन है और 18 मार्च को होली खेली जाएगी। कई स्थानों पर होलाष्टक शुरू होने पर पेड़ की डाल काटकर रंग बिरंगें कपड़े बांधकर इस डाल को जमीन में गाड़ देते है। इस दिन आम की मंजरी तथा चंदन को मिलाकर खाने का भी महत्व है।आचार्य शक्तिधर त्रिपाठी ने बताया कि होलाष्टक में शुभ कार्य वर्जित होने का कारण भक्त प्रह्लाद और कामदेव से जुड़ा है। राजा हिरण्यकश्यप ने बेटे प्रह्लाद को फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि से होलिका दहन तक कई प्रकार की यातनाएं दी थीं, अंत में बहन होलिका के साथ मिलकर फाल्गुन पूर्णिमा को भक्त प्रह्लाद की हत्या करने का प्रयास किया. लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से भक्त प्रह्लाद बच गए और होलिका आग में जलकर मर गई। भगवान शिव ने कामदेव को फाल्गुन शुक्ल अष्टमी को अपने क्रोध की अग्नि से भस्म कर दिया था। इन दोनों वजहों से ही होलाष्टक में शुभ कार्य वर्जित होते है।
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