कोरोना के कारण 130 साल में पहली बार जनगणना की परंपरा टूटने का खतरा खड़ा हो गया है। दो भागों में होने वाली जनगणना का पहला भाग घरों और मवेशियों की गिनती का काम 30 सितंबर तक पूरा होना था, लेकिन अभी इसकी कोई संभावना नजर नहीं आ रही है। यदि कोरोना का कहर अगले साल जनवरी तक नहीं थमा तो फरवरी में होने वाली व्यक्तियों की गिनती का काम भी रुक सकता है।
ध्यान देने की बात है कि भारत दुनिया के गिने-चुने देशों में है, जहां 1881 से लगातार हर 10 साल पर जनगणना होती रही है। यहां तक कि दूसरे विश्व युद्ध के दौरान भी 1941 में इसे रोका नहीं गया था। आजादी के पहले फरवरी और मार्च के बीच कभी भी जनगणना होती रही थी, लेकिन आजादी के बाद 1951 से इसे नौ फरवरी से 28 मार्च के बीच तय कर दिया गया। उसके बाद एक और तीन मार्च को दोबारा इस दौरान जन्मे नए बच्चों की गिनती की जाती रही है, ताकि उस साल एक मार्च को देश की असली जनसंख्या का पता चल सके। लेकिन कोरोना के कारण इस बार इसके टलने का खतरा बढ़ गया है।
दरअसल भारत में जनगणना दो चरणों में होती है। पहले चरण में एक अप्रैल से 30 सितंबर के दौरान देश में सभी घरों और मवेशियों की गणना होती है। इस बार इसके साथ असम को छोड़कर देश के अन्य हिस्से में नेशनल पापुलेशन रजिस्टर (NPR) को भी अपग्रेड किया जाना था। लेकिन कोरोना के कारण लगे पहले लॉकडाउन के साथ ही 25 मार्च को भारत के महापंजीयक (रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया) ने जनगणना के पहले चरण और एनपीआर को अपग्रेड करने की प्रक्रिया को स्थगित कर दिया। उस समय आरजीआइ को उम्मीद थी कि दो-तीन महीने में कोरोना का कहर थमने के बाद नवंबर के पहले कभी भी पहले चरण को पूरा कर लिया जाएगा। लेकिन हालात यह है कि कोरोना के मामले कम होने के बजाय दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं। नवंबर से सर्दियों के मौसम में बर्फबारी के कारण देश के कई भागों का संपर्क कट जाने की स्थिति में अब यह काम इस साल संभव नहीं दिख रहा है। आरजीआइ के अधिकारियों का मानना है कि इस साल किसी भी स्थिति में जनगणना के पहले चरण को पूरा करना संभव नहीं होगा।