नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि ‘आर्य समाज’ को विवाह प्रमाण पत्र जारी करने का कोई अधिकार नहीं है। इसके साथ ही सर्वोच्च अदालत ने नाबालिग लड़की के अपहरण और दुष्कर्म के आरोपी की जमानत याचिका खारिज कर दी। न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की अवकाशकालीन पीठ ने आरोपी के वकील की इस दलील को खारिज कर दिया कि लड़की बालिग है और दोनों ने एक ‘आर्य समाज’ मंदिर में शादी की है। उनके पास दस्तावेज के तौर पर इसका एक विवाह प्रमाण पत्र भी है। पीठ ने कहा कि आर्य समाज का विवाह प्रमाणपत्र जारी करने का कोई हक नहीं है। यह अधिकारियों का काम है। शिकायतकर्ता लड़की की ओर से अधिवक्ता ऋषि मटोलिया पेश हुए। उन्होंने कहा कि पीड़िता ने सीआरपीसी की धारा-164 के तहत दर्ज कराए गए अपने बयान में आरोपी के खिलाफ दुष्कर्म के आरोप लगाए हैं। इसके बाद बेंच ने आरोपी की जमानत याचिका खारिज कर दी।समाचार एजेंसी पीटीआइ की रिपोर्ट के मुताबिक आरोपी के खिलाफ पुलिस स्टेशन पादुकलां, नागौर में धारा 363, 366ए, 384, 376(2)(एन) और POCSO अधिनियम के तहत केस दर्ज किया गया था। बीते 5 मई, 2022 को राजस्थान उच्च न्यायालय ने गिरफ्तार किए गए आरोपी की जमानत याचिका खारिज कर दी थी। उच्च न्यायालय के समक्ष आरोपी के वकील ने दलील दी थी कि प्राथमिकी डेढ़ साल की देरी से दर्ज की गई है और शिकायतकर्ता की ओर से उक्त देरी की वजह स्पष्ट नहीं की गई है।वकील ने आगे कहा था कि पीड़िता बालिग है और आरोपी के साथ उसकी शादी पहले ही ‘आर्य समाज’ मंदिर में हो चुकी है। इस शादी का प्रमाण पत्र भी रिकॉर्ड में उपलब्ध है। इस पर उच्च न्यायालय ने कहा था कि पीड़िने सीआरपीसी की धारा-164 के तहत दर्ज अपने बयान में याचिकाकर्ता (लड़के) के खिलाफ दुष्कर्म का आरोप लगाया है। हालांकि अदालत ने यह भी गौर किया कि लड़की ने अपने बयान में कहा था कि आरोपी ने एक कोरे कागज पर उसके हस्ताक्षर लिए थे।