सनातन धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। हिंदी पंचांग के अनुसार, हर महीने में दो एकादशी मनाई जाती है और एक वर्ष में 24 एकादशी मनाई जाती है। वहीं, अधिकमास में 26 एकादशी मनाई जाती है। इस प्रकार मार्गशीर्ष महीने में कृष्ण पक्ष की उत्पन्ना एकादशी 30 नवंबर को है। धार्मिक मान्यता है कि एकादशी व्रत के पुण्य प्रताप से व्रती को समस्त पापों से मुक्ति मिलती है। साथ ही सभी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती हैं। कालांतर से एकादशी व्रत मनाने का विधान है। इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा उपासना की जाती है। आइए, उत्पन्ना एकादशी के बारे में सबकुछ जानते हैं हिंदी पंचांग के अनुसार, 30 नवंबर को प्रातः काल 4 बजकर 13 मिनट पर एकादशी प्रारंभ होकर 1 दिसंबर की रात्रि को 2 बजकर 13 मिनट पर समाप्त होगी। अतः साधक दिनभर भगवान श्रीविष्णु की पूजा-उपासना कर सकते हैं। एकादशी की शुरुआत दशमी के दिन से होती है। इस दिन तामसिक भोजन समेत लहसुन, प्याज आदि चीजों का सेवन बिल्कुल न करें। साथ ही ब्रह्मचर्य नियम का भी पालन करें। अगर संभव हो तो सेंधा नमक युक्त भोजन का सेवन करें। एकादशी के दिन प्रातः काल ब्रह्म बेला में भगवान श्रीहरि विष्णु को प्रणाम कर दिन की शुरुआत करें।
फिर घर की साफ-सफाई करें इसके बाद नित्य कर्म से निवृत होकर गंगाजल युक्त पानी से स्नान ध्यान करें।इसके बाद आमचन कर पीले रंग का वस्त्र धारण करें। अब सबसे पहले भगवान भास्कर को जल का अर्घ्य दें। फिर भगवान श्रीविष्णु की पूजा पीले पुष्प, पीले फल, धूप, दीप तुलसी दल से करें। अंत में आरती-अर्चना कर पूजा संपन्न करें। दिनभर निराहार व्रत करें। व्रती चाहे तो दिन एक एक बार जल और एक फल का सेवन कर सकते हैं। संध्याकाल में आरती अर्चना करने के पश्चात फलाहार करें। अगले दिन पूजा पाठ कर पारण यानी व्रत खोलें।