लखनऊ । अश्विन के हिंदू महीने के दौरान एक पखवारा मृत पूर्वजों को समर्पित होता है और इस अवधि को पितृ पक्ष कहतें हैं, यह चरण, जो 16 दिनों तक चलता है इसमें कोई भी शुभ कार्य जैसे शादी, विवाह, सगाई, मुंडन, गृह प्रवेश जैसे किसी भी अनुष्ठान की मनाही होती है। पितृ पक्ष का समापन सर्वपितृ अमावस्या के साथ होता है जो मां दुर्गा को समर्पित शारदीय नवरात्रि की शुरुआत का प्रतीक मानी जाती है। पितृ पक्ष से जुड़ी कई मान्यताओं में तर्पण और पिंडदान भी शामिल हैं जो पितरों की शांति के लिए अच्छे माने जाते हैं। आचार्य शक्तिधर त्रिपाठी ने बताया कि तर्पण में पके हुए चावल, जौ और काले तिल का पिंड आटे या मिट्टी के पांच दीपकों में सरसों का तेल भरकर इन्हें दोने में किसी पवित्र नदी या सरोवर में प्रवाहित करने की प्रथा गरुण पुराण में वर्णित है,दीपदान से पितृ भी प्रसन्न होते हैं, इससे धन, मान और सुख, वैभव सब प्राप्त होता है। तर्पण में पके हुए चावल, जौ और काले तिल का पिंड आटे या मिट्टी के पांच दीपकों में सरसो का तेल भरकर इन्हें दोने में किसी पवित्र नदी या सरोवर में प्रवाहित करने की प्रथा गरुण पुराण में वर्णित है,दीपदान से पितृ भी प्रसन्न होते हैं, इससे धन, मान, सुख, वैभव सब प्राप्त होता है। पिंडदान किसी परिवार के सदस्य की मृत्यु के बाद हिंदुओं द्वारा किया जाने वाला एक पवित्र अनुष्ठान है। गरुड़ पुराण के अनुसार स्वर्ग लोक में जाने वाली आत्मा की शांति के लिए यह अनुष्ठान अनिवार्य है। यह मृतकों के लिए सांसारिक आसक्तियों से राहत प्रदान करने और अंतिम मोक्ष पाने के लिए किया जाता है। पिंडदान मृत पूर्वजों के लिए एक प्रसाद स्वरूप होता है। इसे मुख्य रूप से पके हुए चावल को काले तिल के साथ मिलाकर बनाया जाता है। इस मिश्रण के छोटे-छोटे पिंड या गोले बनाकर पूर्वजों के नाम से चढ़ाया जाता है जिससे पितरों को शांति और मोक्ष मिल सके।मुगलों के द्वारा बलात धर्म परिवर्तन के बाद लाखों परिवार के पित्तरों को पिंडदान नहीं हो सका तथा देश पर बलिदान हुए जवानों सहित हजारों मारे गए सनातनियों जम्मू एवं कश्मीर में अकाल मृत्यु को प्राप्त कश्मीरी भाइयों एवम अन्य हिन्दू पितरों के लिए गोमती तट पर पितृ तर्पण- दीपदान 25 सितंबर को पितृ पक्ष अमावस्या के दिन शाम चार बजे, यज्ञ स्थल, झूलेलाल वाटिका, गोमती तट पर होने वाले इस महा दीपदान का आयोजन परम पूज्य दंडी स्वामी श्री राम आश्रम जी महाराज के सानिध्य में होना सुनिश्चित हुआ है, यह पिंडदान उन आत्माओं को समर्लित होगा जिनका पिंडदान- तर्पण करने वाला कोई शेष नहीं रहा इस तर्पण से बुजुर्गो की आत्म शांति होगी और उनका आशीर्वाद प्राप्त होगा।