वाराणसी। भारत की पहचान राजाओं से नहीं, ऋषि-मुनियों से है। ऋषि-मुनियों ने भारतीय संस्कृति को समृद्ध करने के लिए हजारों वर्षों तप साधना की है। ऋषियों ने आत्मा को संस्कृति से पहचानने का आधार बनाया है। आत्मा से कोई बाहर नहीं हो सकता। यही कारण है कि हमारे यहां स्त्रियों से लेकर जानवरों तक का सम्मान है। ऐसा दूसरे देशों में नहीं है। गंगा महासभा की ओर से आयोजित संस्कृति संसद के दूसरे दिन के प्रथम सत्र में भारत की आध्यात्मिक संस्कृति को महानतम बताते हुए केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कहा यह संस्कृति हजारों साल पुरानी और इसमें सभी का समावेश है ।