लखनऊ । अनियमित दिनचर्या से बिगड़ी जीवनशैली और खराब खानपान के कारण तमाम बीमारियों ने मानव शरीर को अपना घर बना लिया है। फैटी लीवर भी एक ऐसी ही महामारी के रूप में उभर रहा है। अगर समय से इसकी रोकथाम और उपचार के लिए उपाय न किए जाएं तो यह जानलेवा भी साबित हो सकता है। वैसे तो इसके लिए तमाम दवाएं उपलब्ध हैं, लेकिन उनके कुछ न कुछ साइड इफेक्ट देखने को मिलते हैं। ऐसे में इसका समाधान निकालने के लिए वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर) की प्रयोगशाला केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (सीडीआरआइ) ने आइसीएमआर के साथ मिलकर ‘पिक्रोलिव’ नाम की दवा तैयार की है। कुटकी नाम के पौधे के अर्क से बनने वाली इस दवा के लिए संस्थान जल्द ही तीसरे दौर का क्लिनिकल ट्रायल शुरू करेगा। दवा नियामक ड्रग कंट्रोलर जनरल आफ इंडिया (डीजीसीआइ) से इसकी अनुमति भी मिल गई है। दवा विकास से जुड़ी इन संस्थाओं ने फाइटोफार्मास्युटिकल मोड के तहत पिक्रोराईजा कुरोआ नाम के पौधे से ही पिक्रोलिव को तैयार किया है। इसी पौधे को आम भाषा में कुटकी कहा जाता है, जो समुद्र तल से 3,000 से 5,000 मीटर ऊंचाई वाले इलाकों में उगता है। इस दवा को लेकर सीडीआरआइ के निदेशक डा. डी श्रीनिवास रेड्डी ने बताया कि यह दवा गैर-अल्कोहोलिक फैटी लीवर रोग (एनएएफएलडी) के रोगियों के लीवर में वसा की मात्रा और उसके बाद की जटिलताओं को कम कर सकती है। आइसीएमआर के सहयोग से एम्स दिल्ली, आइएलबीएस दिल्ली, पीजीआइएमईआर चंडीगढ़, केईएम मुंबई, निम्स हैदराबाद और केजीएमयू लखनऊ जैसे छह अस्पतालों में मरीजों पर इस औषधि का परीक्षण किया जाएगा।