नई दिल्ली। पोलैंड की राजधानी वारसॉ में तोवा गट्सटीन का जन्म उसी साल हुआ था, जब जर्मनी में एडोल्फ हिटलर सत्ता में आया था। तोवा उस वक्त 10 साल की थीं, जब वारसॉ घेट्टो (यहूदी बस्ती) में रहने वाले यहूदियों ने यूरोप में नाजियों के खिलाफ पहला सामूहिक विद्रोह शुरू किया था। शुक्रवार को 90 साल की तोवा नाजी नरसंहार से बचे उन चुनिंदा लोगों में से एक हैं, जो वारसॉ घेट्टो में हुए इस विद्रोह के गवाह बने थे।
सोमवार को जब इज़राइल राष्ट्रीय चेतना को आकार देने वाले इस विद्रोह की 80वीं वर्षगांठ मनाएगा, तब तोवा नाजी नरसंहार में बचे उन छह लोगों में शामिल होंगी, जिन्हें यरूशलम में याद वाशेम नरसंहार स्मारक पर आयोजित किए जाने वाले वार्षिक समारोह में दीप प्रज्वलित करने का सम्मान हासिल होगा। तोवा के मुताबिक, नाजी नरसंहार का खौफनाक मंजर आज भी उनके जहन में ताजा है। उन्होंने मध्य इज़राइल में अपने आवास पर ‘द एसोसिएटेड प्रेस’ के साथ बातचीत में कहा, “80 साल से ज्यादा समय बीत चुका है, लेकिन मैं उस खौफनाक मंजर को नहीं भुला पाई हूं।”
तोवा वारसॉ घेट्टो में पली-बढ़ी थीं। नाजी उनके पिता को जबरन एक श्रमिक शिविर में ले गए थे, जिसके बाद वह कभी नहीं देखे गए। तोवा याद करती हैं कि बिजली के तारों की बाड़ वाले वारसॉ घेट्टो में कैसे वह और अन्य यहूदी बच्चे खाना बीनने के लिए जमीन पर रेंगकर बाहर जाते थे। वह कहती हैं कि इस दौरान कुछ बच्चों की सीवर में गिरकर मौत भी हुई थी। तोवा ने कहा, “हम सिर्फ खाने के बारे में सोचते रहते थे। हम सिर्फ यही सोचते रहते थे कि खाने की व्यवस्था कैसे की जाए। हमारे दिमाग में कोई और बात होती ही नहीं थी।”