अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के दिन जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं वैसे-वैसे ही वहां पर सियासी पारा भी चढ़ता जा रहा है। एक तरफ जो बिडेन और उप राष्ट्रपति प्रत्याशी कमला हैरिस हैं तो दूसरी तरफ डोनाल्ड ट्रंप हैं। अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव नवंबर में होने हैं। अमेरिका में होने वाले इस चुनाव पर पूरी दुनिया के राजनेताओं के अलावा राजनीतिक विश्लेषकों की भी निगाह लगी हुई है। ट्रंप और बिडेन दोनों ही अपनी अपनी जीत के दावे कर रहे हैं लेकिन जानकार किसकी जीत को ज्यादा करीब पा रहे हैं और इसकी वजह क्या हैं, इसको लेकर दैनिक जागरण ने जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एके पाशा से बात की।
प्रोफेसर पाशा ट्रंप को बिडेन की तुलना में कमजोर प्रत्याशी मानते हैं। इसलिए वो इस चुनाव में ट्रंप की जीत को 10 में से केवल 2 ही नंबर दे रहे हैं। उनका कहना है कि राष्ट्रपति ट्रंप का कोई स्टैंड नहीं है। वो कहते कुछ हैं करते कुछ हैं। कई बार वो अपनी ही बातों से मुकर जाते हैं। इसका एक उदाहरण भारत को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा न भेजने पर धमकी है। दवा भेजने पर उन्होंने भारत की तारीफ भी की। लेकिन जब भारत अफगानिस्तान में लोगों के हितों के लिए निवेश की बात करता है तो ट्रंप तंज कसते हैं कि भारत ने लाखों खर्च कर वहां पर एक लाइब्रेरी बनवाई है।एक तरफ वो कहते हैं कि भारत उनका करीबी दोस्त है और उसकी अहमियत है, लेकिन वहीं दूसरी तरफ ट्रंप तालिबान से समझौता करते हैं। इससे उनकी छवि न सिर्फ अमेरिका में बल्कि पूरी दुनिया में नकारात्मक तरह से पेश होती है। पाशा ये भी मानते हैं कि अमेरिका और वहां रहने वाले लोगों के स्थानीय मुद्दों पर भी ट्रंप खरे नहीं उतरते दिखाई दे रहे हैं। यही वजह है कि ट्रंप अमेरिका में स्थानीय मुद्दों पर कम चर्चा करते हैं और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर अधिक बात करते हैं। वहीं दूसरी तरफ अमेरिकियों को या दूसरे लोगों की निगाह में स्थानीय मुद्दे उन्हें सीधेतौर पर प्रभावित करते हैं।प्रोफेसर पाशा के मुताबिक जब कोई नेता अपने देश में अपनी पहचान बना पाने में नाकाम होता है तब वो अंतरराष्ट्रीय पहचान वाला किरदार देश और दुनिया के सामने रखने की कोशिश करता है। यही ट्रंप भी कर रहे हैं। लेकिन इसका फायदा आने वाले चुनाव में न के ही बराबर उन्हें मिलेगा। उनका कहना है कि ऐसे विरोधाभासी लीडरशिप पर ज्यादा उम्मीद करना भी सही नहीं है। उनका ये भी कहना है कि मौजूदा कोरोना वायरस से ट्रंप जिस तरह से लड़े हैं उससे उनकी छवि खराब हुई है उनके चुनाव में जीतने की उम्मीद भी कम हो गई है। इस जंग में उनके द्वारा उठाए गए कदमों ने अमेरिकी जनता को नाराज करने का काम किया है। हालांकि पिछले दिनों अमेरिका की मध्यस्थता में हुआ यूएई-इजराइल समझौता ट्रंप के लिए जरूर एक कूटनीतिक जीत है। उन्होंने अमेरिका में ट्रंप की छवि पर पूछे गए सवाल के जवाब में कहा कि एक बार भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कहा था कि जो राष्ट्राध्यक्ष अंतरराष्ट्रीय नीतियों पर ज्यादा तवज्जो देते हैं उनकी अपनी ही छवि देश में नकारात्मक हो जाती है। पाशा भी इस थ्योरी को सही मानते हैं। उनका कहना है कि जो लीडर अपने देश के लोगों का समर्थन खो देता है वो फिर दुनिया के दूसरे देशों से समर्थन मांगने की ऐसे ही कोशिश करता है।