वर्तमान राजनीति में आरोप और प्रत्यारोप का बोलबाला बढ़ता जा रहा है, जिसकी वजह से वास्तविक मुद्दे और मानवीय संवेदनाओं की जगह कम होती जा रही है। ऐसे में यदि किसी भी राजनीतिक नेता द्वारा संवेदनशीलता का परिचय देना लोगों के बीच उनकी छाप छोड़ जाता है।
राजनीति के बीच आम लोगों से भावनात्मक रिश्ते के तार जोड़ना कठिन है क्योंकि ऐसे व्यवहार मे हमेशा राजनीति ही देखी जाती है। मानवीय और पारिवारिक रिश्तों की संवेदना को बखूबी समझने मे काँग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा का उदाहारण दिया जाता है। न केवल एक महिला होने के नाते बल्कि अपने स्वभाव से ही उनके संवेदनशील होने का परिचय हाल की कुछ घटनाओं मे देखने को मिला।
प्रियंका गांधी वाड्रा सरकार के खिलाफ लगातार हमलावर रही हैं। उन्होंने प्रदेश में विधानसभा चुनाव की बागडोर अपने हाथ में संभाल रखी है। लखीमपुर खीरी कांड से लेकर अन्य तमाम विवादों के समय में प्रियंका ने पार्टी को आगे बढ़कर नेतृत्व प्रदान किया।
अपने संवेदनशील व्यवहार का एक और परिचय देते हुए प्रियंका गांधी ने अपने अत्यंत सफल “लड़की हूँ, लड़ सकती हूँ” मैराथॉन का आयोजन कोविड संक्रमण फैलने की आशंका मे 5 जनवरी को ही रोक दिया, जबकि उस दिन तक इस दिशा मे कोई आदेश नहीं आए थे। यह सफल मैराथॉन झांसी, बरेली व लखनऊ मे आयोजित हो चुके थे और वाराणसी, नोएडा व अन्य जिलों मे आने वाले दिनों मे प्रस्तावित थे। पार्टी नेताओं का कहना था कि प्रियंका छात्राओं व बच्चों के स्वास्थ्य के विषय मे कोई भी खतरा नहीं मोल लेना चाहती हैं।
एक अन्य उदहारण कुछ समय पहले देखने को मिला जब किसान आंदोलन के दौरान हुई घटनाओं मे प्रियंका गांधी वाड्रा लखीमपुर खीरी के तिकोनिया कांड में मृत स्व. दलजीत सिंह के परिवार से उनके गाँव मिलने गईं। उनकी पत्नी व बेटी को आवश्यकता पड़ने पर संवाद के लिए अपना वाट्सएप नंबर तो दिया ही, कानूनी लड़ाई के साथ शिक्षा और जीविकोपार्जन में भी सहयोग का वादा किया। ऐसा ही भरोसा उन्होंने एक अन्य मृतक के परिवार जनों को भी दिया। इसके बाद ग्रामवासियों का कहना था कि राजनीतिक व्यक्तित्व होने के बावजूद प्रियंका ने एक अपनेपन का परिचय दिया।
नवंबर माह में बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती की माताजी रामरती का दिल्ली में हृदय गति रुकने से निधन हो गया था। जहां सभी राजनीतिक व अन्य लोगों ने इस दुखद समाचार पर बयान जारी कर अपनी संवेदना प्रकट की, वहीं प्रियंका गांधी मायावती से मिलने उनके घर पहुंचीं और उनकी माँ के निधन पर संवेदना जताई।
प्रदेश वासी यह देख रहे हैं कि आरोप-प्रत्यारोप के माहौल में प्रियंका अपने सौम्य व संवेदनशील व्यवहार से लोगों तक अपनी बात रखने मे सफल हो रही हैं। उनका यह कहना है कि यह देश किसानों द्वारा मजबूत बनाया गया है और उनके हितों को दरकिनार करके कोई भी सरकार देश का भला नहीं कर सकती। उनके “लड़की हूं, लड़ सकती हूं” के आयोजन की वजह से आज सभी दलों को महिलाएं के लिए काम करना पड़ रहा है। प्रियंका ने कहा कि महिलाएं जग गई हैं, इस देश की शक्ति के आगे सत्ता को भी झुकना पड़ा है। “यह उत्तर प्रदेश की महिलाओं की जीत है, जिससे मैं बहुत खुश हूं,” उनका कहना है।
प्रदेश में बड़े पैमाने पर लोगों को पार्टी की सदस्यता दिलाने में उनका अभियान काफी सार्थक सिद्ध हुआ है और पार्टी इसे भाजपा की धर्म तथा जाति आधारित राजनीति के जवाब में देख रही है। प्रदेश में किसानों, महिलाओं व मजदूरों की समस्याओं की ओर भी उन्होंने ध्यान आकर्षित किया है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि आने वाले दिनों मे भले ही चुनाव प्रचार के तरीके बदल जाएं, लेकिन संवेदना की तस्वीर के रूप में प्रियंका की छवि स्थापित हो चुकी है।